हमारी भारतीय संस्कृति, शिक्षा की प्रणाली और प्राचीन परंपरा सभी अतुलनीय रही है। पर इसकी महत्ता आज की पीढ़ी और परिवेश में खोती जा रही है। जिसे पूरी दुनिया अपनाती रही है और यह प्रमाणित भी है की उन बनाये हुए व्यवस्था के अनुसरण मात्र से ही अपने जीवन में कई उपलब्धियों को पाया जा सकता है। जिस प्रणाली और सीख से विवेकानंद जैसे महापुरुष बने और दुनिया में देश का नाम रौशन किया उन चीजों का अनुसरण अपने जीवन में कर अपने जीवन को कुछ हद तक सफल बना सकते हैं। स्वामी विवेकानंद के वंशज होने के साथ हमें भी भारतीय संस्कृति , संस्कार एवं अपने समुदाय, राष्ट्र और देश के प्रति दायित्व का निर्वहन करना चाहिए।
अथर्व वेद की यह पंक्ति जिसका भावार्थ है- हमारे विचार सदैव शुद्ध व पवित्र रहें। हम दूसरों को भी कुमार्ग से बचाकर सन्मार्ग की ओर ले जाऍ, ताकि सभी मिलकर पूर्ण आयुष्य प्राप्त करें।
इन बातों को जीवन में अनुसरित कर सामूहिक उत्थान और राष्ट्र के प्रति दायित्व को जानना और समझना जरुरी है। शिक्षा के साथ संस्कार और संस्कृति जीवन के आधारभूत स्तम्भ हैं। संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने और नैतिक विज्ञान, प्राचीन इतिहास, संस्कृति और परंपराओं के महत्व को समझने के लिए मौजूदा प्रणाली में एक प्रशिक्षण मॉड्यूल और इसकी उपयोगिता यह हमारी जीवन शैली को बेहतर बनाने में कैसे मदद कर सकता है? वर्षों के प्रयास, जीवनकाल के शोध और तप से वैज्ञानिक तौर पर प्राचीन परंपराओं, भारतीय संस्कृति और संस्कार युक्त शिक्षा, जीवन एव राष्ट्र के उत्थान के लिए जनहित में तैयार की गयी थी जो धूमिल हो रही। उस पर प्रकाश डालते हुए उसका प्रचार और प्रसार करना, जिससे जीवन शैली औऱ राष्ट्र के उत्थान में योगदान हो पाएगा।
हमारी भारतीय संस्कृति, शिक्षा की प्रणाली और प्राचीन परंपरा सभी अतुलनीय रही है। पर इसकी महत्ता आज की पीढ़ी और परिवेश में खोती जा रही है। जिसे पूरी दुनिया अपनाती रही है और यह प्रमाणित भी है की उन बनाये हुए व्यवस्था के अनुसरण मात्र से ही अपने जीवन में कई उपलब्धियों को पाया जा सकता है। जिस प्रणाली और सीख से विवेकानंद जैसे महापुरुष बने और दुनिया में देश का नाम रौशन किया उन चीजों का अनुसरण अपने जीवन में कर अपने जीवन को कुछ हद तक सफल बना सकते हैं। स्वामी विवेकानंद के वंशज होने के साथ हमें भी भारतीय संस्कृति , संस्कार एवं अपने समुदाय, राष्ट्र और देश के प्रति दायित्व का निर्वहन करना चाहिए।
जहाँ दुनिया का प्रथम विश्वविद्यालय “तक्षशिला” था, जिस प्रणाली ने जीवन के मूल्यों को समझाया और अपने जीवन को सुगम बनाने के लिए योग और आसान का उपयोग, अपने आप की पहचान के लिए ध्यान और प्राणायाम के उल्लेखनीय उपलब्धि और जीवन में इसके अनुसरण से लाभ को विश्व भी कभी नजरअंदाज नहीं कर पाया। हम सब उसी प्रणाली और व्यवस्था में जन्मे हैं, जहाँ शिक्षा और जीवन के मूल्यों को गहराई से अध्यन कर हमारे पूर्वजों ने हमे व्यवस्थाएं और सीख दी। आधुनिकता के इस युग में प्राचीन प्रणाली को अप्रचलित मान कर नजरअंदाज करते जा रहे हैं। संस्कार और सदाचार के मूल्यों को पूरी तरह से भुला दिया है। अगर हम पुराने समय की बात करें तो हवाई जहाज जिसकी कल्पना हमारे ग्रंथ में पुष्पक विमान के रूप में और प्लास्टिक सर्जरी का गणेश के रूप में युगों पहले किया जा चूका था हम सभी उस व्यवस्था में जन्म लेकर भी खुद को पिछड़ा महसूस कर नक़ल करने को विवश है। राष्ट्र के प्रति प्रेम , समाज के प्रति दायित्व और अपने जीवन जीने के लिए अनुशासन, संस्कार और मूल्यों को भूलते जा रहें हैं। इसमें हमारा भी दायित्व है की इसे विलुप्त होने के पहले बचा लिया जाये। जिस भारत ने शिक्षा पाने की पूरी प्रणाली जैसे गुरुकुल, गणित में मूलभूत अंक “जीरो” और संगीत में “सात सुरों ” का सरगम दिया, उसके बावजूद खुद को कुंठित कर विदेशी व्यस्था को अपनाने की होड़ में लगे हैं।
हमारा प्राचीन इतिहास, विज्ञान, खगोल विज्ञान, कला, साहित्य, योग, गणित आदि प्रचुर और अद्वितीय रहा है। विभिन्न क्षेत्रों में वैदिक भारतीयों के अद्वितीय योगदान भी सराहनीय है जैसे की गणितज्ञ-खगोलविदों आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त, व्याकरणशास्त्री पाणिनी, प्राचीन कला और आयुर्वेद के विज्ञान में योगदान करने वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति जैसे सुश्रुत और चरक की उपलब्धता इसके विराट स्वरुप का प्रमाण हैं। दुर्भाग्यवश मुग़ल शासन और अंग्रेजो के गुलामी काल से सब खंडित हो गया। आज भी शास्त्रीय संस्कृत की मर्मता, लेखक कालिदास, अर्थशास्त्री चाणक्य अन्य की दी हुयी सिख भूलने लायक नहीं है। जहाँ तक्षशिला में पढ़ाए जाने वाले विषयों जैसे घुड़सवारी, युद्ध शैली एवं विभिन्न व्यावसायिक कौशल शिक्षा का प्रावधान काफी समय पहले हुआ करता था। वह आज विभिन्न क्षेत्र में चलन में आया है। यह देश हाल के दिनों में जगदीश चंद्र बोस, श्रीनिवास रामानुजन, सीवी रमन और सत्येंद्र नाथ बोस जैसे आधुनिक भारतीय गणितज्ञों के योगदान को भी उजागर करता है। नैतिक शिक्षा और सामाजिक दायित्व के लिए युवाओं को प्रोत्साहित करना, धर्म मतभेद और जात पात से ऊपर उठ कर जीवन जीने की शैली, पुरातन संस्कृति, नैतिक शिक्षा, देश के प्रति प्रेम और राष्ट्र के प्रति दायित्व के मानकों को बच्चों और आधुनिक शिक्षा के साथ लोगो और निजी विद्यालयों के छात्रों तक पहुँचाना। हर कार्य को भगवान या सरकार के लिए नहीं छोड़ा जा सकता और संस्कारयुक्त शिक्षा से समाज सुधारा जा सकता है!अपने सामाजिक दायित्व को लोगो को समझना और संस्कृति में छुपे खुद की भलाई को लोगो तक पहुँचाना इस कार्यक्रम का उद्देश्य है। आचार्य जी द्वारा कही हुई कुछ पंक्तिया –
इन मानकों को हम सब अपने जीवन में अपना कर इसे साकार करेंगे।
जीवन के मूलभूत सिद्धांतो की जानकारी, दैनिक कार्यक्रम में पालन करने वाले कदम जिससे जीवन को उत्कृष्ठ बनाया जा सके। देश व् राष्ट्र के प्रति, समाज के प्रति दायित्व और अपने संस्कृति की पहचान, सदाचार की जीवन में उपयोगिता के प्रति युवाओं को जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण शिविर।
डिजिटल और तकनीकी शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध – आज के बदलते आधुनिक परिवेश में डिजिटल उत्पाद रोज की जिंदगी में मुलभुत आवश्यकता की सूचि में जुड़ गयें हैं। इसकी जानकारी और शिक्षा से ग्रामीण क्षेत्र और कई सारे और भी लोग वंचित हैं। जो भी लोग इसकी जानकारी रखते हैं उसे और लोगो के साथ साझा करें। अकुशल और वंचित लोगों को व्यावसायिक पाठ्यक्रम और नौकरी उन्मुख जानकारी साझा करें।
महिलाएं जो शिक्षा, रोजगार और कौशल विकास के लिए उत्सुक हैं और संकोच में होती है उनके लिए उन्हें प्रोत्साहित और सहयोग प्रदान करना।